मंगलवार, 12 जून 2007

विलक्षण प्रतिभा के धनी थे महर्षि वेद व्यास

हस्तिनापुर / मवाना (मेरठ)। संत मोरारी बापू ने रविवार को मानस महाभारत कथा में महाभारत के विख्यात रचयिता ऋषि वेद व्यास के जन्म व जीवन परिचय का अद्भुत वर्णन करते हुए कहा कि महर्षि वेद व्यास विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। राजकीय इंटर कालेज के मैदान में कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि भारत का इतिहास ऋषि-महात्माओं की गाथाओं से भरा हुआ है। उस युग के महान तपस्वियों में ऋषि पाराशर का नाम भी गिना जाता है। ऋषि पाराशर प्रतिदिन नौका से नदी पार करके जाते थे। प्रतिदिन की भांति वह एक दिन नदी किनारे पहुंचे तो वहां वह नाविक नहीं था बल्कि एक सुन्दर यौवना नाव का चप्पू संभाले हुए थी। ऋषि पाराशर को देख यौवना ने अपना परिचय देते हुए कहा कि आज उसके पिता को किसी कारण से बाहर गए है उन्होंने नाव से नदी पार पहुंचाने का दायित्व मुझे सौंपा है, इसलिए आज वह ही आपको नाव से पार लगायेगी। यौवना के वचन सुनकर ऋषि पाराशर उस नाव में बैठ गये, लेकिन यौवना की वाक पटुता, सौंदर्य आदि पर ऋषि मोहित हो गये। इस यौवना का नाम सत्यवती था। उस कन्या को पांच अन्य नामों मत्स्य गंधा, योजन गंधा, काली, यौवन गंधा, मच्छ कन्या से भी पुकारा जाता था। ऋषि पाराशर और सत्यवती के मिलन से एक पुत्र रत्न हुआ, जिसका नदी के दूसरे छोर स्थित टीले पर वह युवती उसका लालन पालन करती थी। बाद में वह पुत्र ऋषि वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ऋषि पाराशर का पुत्र होने के कारण वह महान तपस्वी थे किंतु श्याम वर्ण के थे, वे अधिक सुंदर भी नहीं थे। तपस्या के बल पर वेद व्यास जी ने अनेक सिद्धियां प्राप्त की। संत मोरारी बापू कहते है कि महाभारत के वेद व्यास ही एक ऐसे पात्र है जो कुल में सबसे बड़े होने के कारण हर स्थान पर तथा कौरवों और पाडवों दोनो के पास दिखाई पड़ते थे। वेद व्यास ने महाभारत में एक लाख श्लोकों की रचना की है। उन्होंने कहा कि महर्षि वेद व्यास जैसा मनीषी तथा विद्वान कोई नहीं था।

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