मंगलवार, 12 जून 2007

यूपीयूडीएफ की जिला और शहर कमेटियां भंग

मेरठ। स्थापना के एक वर्ष के भीतर ही यूपी यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का कुनबा जिस तेजी से बढ़ा उसी गति से बिखरता भी जा रहा है। विधानसभा चुनाव के बाद हुई समीक्षा में संगठन को नये सिरे से संवारने के लिए सदस्यता अभियान चलाने से पूर्व जिला व महानगर कमेटियों के साथ संसदीय बोर्ड को भी भंग करने का ऐलान किया गया है। गौरतलब है कि साझा मुस्लिम फ्रंट की परिकल्पना लेकर गठित किया यूडीएफ अपने स्थापना के समय से ही विवादों में घिरा रहा है। शाही इमाम अब्दुला बुखारी की सरपरस्ती में बने यूडीएफ की केन्द्रीय कमान सीएम इब्राहिम को और उप्र में युसूफ कुरैशी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था। यूडीएफ के समानान्तर पीडीएफ बनी लेकिन उसका प्रभावशाली वजूद अधिक दिनों तक नहीं बना रहा सका। मुस्लिमों में मुलायम के असर की आंधी के आगे यूडीएफ को भी कई बार तगड़े झटके लगे जिसमें पूर्व हज मंत्री याकूब कुरैशी के अड़ियल रुख का भी अहम रोल रहा। याकूब के मुलायम विरोधी तेवर अंतत शाही इमाम अब्दुला बुखारी को भी अखरने लगे। यूपीयूडीएफ के नाम से अलग राजनीतिक दल पंजीकरण होने के कारण इसके असली कर्ताधर्ता कुरैशी बंधु ही रह गये थे। प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी युसूफ के पास तो स्टार प्रचार की भूमिका में याकूब रहे। याकूब यूडीएफ के इकलौते विधायक विजयी हुए। प्रदेश में मायावती की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनते ही उनमें बसपा प्रेम जगा। उन्होंने विधायक दल का विलय कर विधानसभा से यूडीएफ का अस्तित्व ही मिटा दिया लेकिन प्रदेशाध्यक्ष युसूफ यूपीयूडीएफ को जिंदा रखने का दावा कर रहे हैं। एक साल के अल्प समय में ही साझा मुस्लिम मंच बनाने के तमाम दावे हवा हो गये और आखिरी अलम्बरदार कुरैशी बंधुओं की सियासी राहें भी जुदा हो गयी। यूपीयूडीएफ के बचे खुचे कुनबे को समेट के लिए प्रदेशाध्यक्ष युसूफ कुरैशी ने रविवार को लखनऊ में समीक्षा बैठक की, जिसमें संगठन में फिर से प्राण डालने का फैसला लिया गया। इसके लिए तमाम जिला और शहर कमेटियों को भंग कर फिर बनाने का ऐलान हुआ। संसदीय बोर्ड भी समाप्त कर दिया गया। पहली वर्षगांठ पांच जुलाई को विभिन्न कार्यक्रम करने और सदस्यता अभियान चलाने का निर्णय लिया गया। इसके अलावा उपचुनाव में किस्मत आजमाने की रणनीति पर चर्चा हुई।

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